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नज़्म
मोहम्मद इज़हारुल हक़
नज़्म
अभी तहज़ीब-ए-अदल-ओ-हक़ की कश्ती खे नहीं सकती
अभी ये ज़िंदगी दाद-ए-सदाक़त दे नहीं सकती
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
रख भी दे अब इस किताब-ए-ख़ुश्क को बाला-ए-ताक़
उड़ रहा है रंग-ओ-बू की बज़्म में तेरा मज़ाक़
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
गुलशन-ए-महफ़िल में मानिन्द-ए-सबा आई है तू
सुब्ह-ए-रौशन का पयाम-ए-जाँ-फ़ज़ा लाई है तू
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
इक़बाल सुहैल
नज़्म
रहबरान-ए-राह-ए-हक़ जब रहबरी फ़रमाते हैं
भूले-भटके सब मुसाफ़िर राह पर आ जाते हैं
जगत मोहन लाल रवाँ
नज़्म
वो शिद्दत-ए-बयाँ हो कि हो जुरअत-ए-बयान-ए-हक़
गुस्ताख़ इतनी हो गई मेरी ज़बाँ कभी कभी
अशरफ़ बाक़री
नज़्म
फ़ज़ा-ए-क़ुदरत-ए-हक़ में सदा आबाद होता है
ख़ुदा की क़ुदरतों को देख कर दिल शाद होता है