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नज़्म
कलेजा फुंक रहा है और ज़बाँ कहने से आरी है
बताऊँ क्या तुम्हें क्या चीज़ ये सरमाया-दारी है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अब वो नालों की गरज है अब न वो शोर-ए-फ़ुग़ाँ
अब न उठता है कलेजा से मोहब्बत का धुआँ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
बहुत दिन तक उठाए नाज़-ए-बे-बजा आप के हम ने
कलेजा अब तो छलनी कर दिया है ख़ंजर-ए-ग़म ने
ज़ाहिदा खातून ज़ाहिदा
नज़्म
सरज़मीं वो जिस में थीं इस्मत से अर्ज़ां ज़िंदगी
कर के पत्थर का कलेजा देखने आया हूँ मैं