aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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सिंध की वादी पे है काली घटा छाई हुईबुर्क़ा ओढ़े इक दुल्हन बैठी है शर्माई हुई
झील किनारेअक्सर शाम को देखा करता
ग़म की काली चाँदनीपर्बतों की चोटियों पर सो गई है
नज़र उठाऊँतो संग-ए-मरमर की कोर बे-हिस
ज़िंदगी वो सफ़ेद फूल है जिसेएक दोस्त दूसरे दोस्त को पेश करता है
है किनारे ये जमुना के इक शाहकारदेखना चाँदनी में तुम इस की बहार
रंग-ए-काएनात कहा गया मुझ कोआँखों में बसे ख़्वाबों से
एक रजअ'त के मरहले में रहूँमैं पलटने के मश्ग़ले में रहूँ
एक रुक़आ लिखेंऔर यूँ लिखें
मेहर-ए-ताबाँ की तेज़ किरनों सेज़र्रा-ज़र्रा है आतिश-पैकर
नाफ़ कटती है ज़ख़्म जलता हैख़ौफ़ धड़कन के साथ चलता है
मिरे देस की उन ज़मीनों के बेटे जहाँ सिर्फ़ बे-बर्ग पत्थर हैं सदियों से तन्हाजहाँ सिर्फ़ बे-मेहर मौसम हैं और एक दर्दों का सैलाब है उम्र-पैमा
है कहाँ वो समाँदर्द के नूर में धुल के निखरे हुए जिस्म-ओ-जाँ
सदा-ए-ख़ुश-ख़िराम थीअदा-ए-दिलबरी लिए
वो तीरगी भी अजीब थीचाँदनी की ठंडी गुदाज़ चादर से सारा जंगल लिपट रहा था
तेरे ग़म में कितना नाज़ुक हो गया है दिल कि अबइस भरे बाज़ार में
आ मेरे अंदर आपवित्र महरान के पानी
इक मौसम मिरे दिल के अंदरइक मौसम मिरे बाहर
बारिश देखती है कि उसे कहाँ बरसना हैऔर धूप जानती है कि उसे कहाँ नहीं जाना
ख़ामोश हुआ भेड़ों का गल्ला चलते चलते मिमया करजा पहुँचा शायद बाड़े में बूसी रस्ते में फैला कर
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