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नज़्म
बड़ा बुज़ुर्ग है ये गो क़लील क़ीमत है
मियाँ बुज़ुर्गों का साया बड़ा ग़नीमत है
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
गो गुलिस्तान-ए-जहाँ पर मेरी नज़रें कम पड़ीं
और पड़ीं भी तो ख़ुदा शाहिद ब-चश्म-ए-नम पड़ीं