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नज़्म
मिरी मश्क़-ए-सुख़न का जब हुआ उन पर असर ज़्यादा
मेहरबानी है उन की मुझ पे कम और है क़हर ज़्यादा
ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी
नज़्म
फिर यक़ीं आए 'सुख़न' ये इंक़िलाब है ज़िंदाबाद
हिंदू-ओ-मुस्लिम का हाँ अब रंग लाया है जिहाद