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नज़्म
लाख बैठे कोई छुप-छुप के कमीं-गाहों में
ख़ून ख़ुद देता है जल्लादों के मस्कन का सुराग़
साहिर लुधियानवी
नज़्म
राहज़न हँसने लगे छुप के कमीं-गाहों में
हम-नशीं ये था फ़रंगी की फ़िरासत का तिलिस्म
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
फिर भी तुम्हें मेरी रूह तक पहुँचने के लिए अपनी कमीं-गाहों के
रस्ते से गुज़रना होगा
शाइस्ता हबीब
नज़्म
कमीं-गाहों की पेशानी कनखियों से मुरस्सा है
तहफ़्फ़ुज़ की कड़ी आँखों की कुछ तासीर बाक़ी है