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नज़्म
वो सूद-ए-हाल से यकसर ज़ियाँ-काराना गुज़रा है
तलब थी ख़ून की क़य की उसे और बे-निहायत थी
जौन एलिया
नज़्म
बाछों से कफ़ उड़ाते उड़ाते
रानों के बीच दम तोड़ती ख़्वाहिशों की गोर-कनी तुम्हारा मुक़द्दर हो गई है
आरिफ़ा शहज़ाद
नज़्म
अज़ीज़ क़द्रों पे जाँ-कनी की गिरफ़्त मज़बूत हो गई है
पतंग की तरह कट चुके हैं तमाम रिश्ते
मज़हर इमाम
नज़्म
ज़िंदा-ओ-ताबिंदा हक़ीक़त है दिल-आवेज़
कोई हीरे की कनी सी कि है तीनत में सिरिश्ता