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नज़्म
इक़बाल सुहैल
नज़्म
मैं औरत हूँ तख़्लीक़-ए-जहाँ का इक सबब भी हूँ
मैं बिल्कुल बे-तलब हूँ और ज़माने की तलब भी हूँ
ज़ेबुन्निसा ज़ेबी
नज़्म
हुरमतुल इकराम
नज़्म
दूर तुझ से ऐ वतन की सरज़मीं जाता हूँ मैं
जाने क्यों तेरे चमन-ज़ारों से घबराता हूँ मैं
जौहर निज़ामी
नज़्म
क़ल्ब ओ नज़र की ज़िंदगी दश्त में सुब्ह का समाँ
चश्मा-ए-आफ़्ताब से नूर की नद्दियाँ रवाँ!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इस क़दर फ़ितरत के हुस्न-ए-दिलरुबा पर है फ़िदा
तालिब-ए-सर हो अगर फ़ितरत तो सर देता है वो