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नज़्म
ज़ब्त पर क़ुदरत है तुझ को ये कि तू ख़ामोश है
तेरे सीने में अगरचे यास-ओ-ग़म का जोश है
साक़िब कानपुरी
नज़्म
कमरे में ख़ामोशी है और बाहर रात बहुत काली है
ऊँचे ऊँचे पेड़ों पर सियाही ने छावनी डाली है
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
तमाम-उम्र दिल-ए-ख़ुद-निगर की नज़्र हुई
अधूरे ख़्वाब हैं दामन में तिश्ना-लब बातें