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नज़्म
निगाह-ए-क़हर की मुश्ताक़ हैं दिल की तमन्नाएँ
ख़त-ए-चीन-ए-जबीं ही को ख़त-ए-क़िस्मत समझते हैं
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
इसी यक़ीं से जो इक ख़त्त-ए-मुसतक़ीम-ए-हयात
ज़मीं पे खींचना चाहें तो हम हैं सौदाई