aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "khataa-khat"
पास ही पेड़ पे हुदहुद की खटा-खट खट-खटऔर निढाल उँगलियाँ कहती हैं थका-थक थक-थक
खट... खट... कौन? सबीहा! कैसे? यूँही, कोई काम नहींपिछली रात.. भयानक गैरज.. क्या कुछ हो अंजाम.. नहीं
हर शय के हैं अजनबी ख़त-ओ-ख़ाल
या तो ख़ुदा हसीनों को कुछ ख़त्त-ओ-ख़ाल देवर्ना उन्हें ख़ुदाई से बाहर निकाल दे
आगे बढ़ाखट खट चला
तड़ तड़ गोले बरसा करखट खट खट खट टैंक चला कर
खट खट खटउठो कि ज़िंदगी की रज़्म-गाहें मुंतज़िर हैं
शहर पहुँचीं तो खुले दर पाएचढ़ गईं सीढ़ियों पर खट खट खट
और मेरे ख़त्त-ओ-ख़ालपैरहन ऊपर का उतरे
खट खट करती खाट उतराईओ हो हो क्या आँधी आई
जहाँ तक कोई सड़क नहीं जातीगाड़ी की खट-खट से
इक आहट सी होती हैकुछ खट-खट सी होती है
खट खट की वो सदा नहीं हैख़ुशबू भी अनजानी सी है
सारी रात दबाता हूँपेन-किलर खा खा के भी अब ऊब गया हूँ
ले अपना खाजाखा जा री चिड़िया
ये खा खा के सोते रहें बार बारहमेशा ये नींदों की लूटें बहार
खाना खा कर पोच ले दामन से हाथकपड़े भर जाएँ कभी सालन से हाथ
क़ातिल जो मेरा ओढ़े इक सुर्ख़ शाल आयाखा खा के पान ज़ालिम कर होंठ लाल आया
जैसे तुम आशिक़ हो और मैं महबूबमेरी नज़र का लम्स तुम्हें ख़ासा ख़ास कर गया
खा खा के गोश्त वेट न अपना बढ़ाइएजो मैं बना रही हूँ वो चुप-चाप खाइए
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