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नज़्म
तुझ पे उट्ठी हैं वो खोई हुई साहिर आँखें
तुझ को मालूम है क्यूँ उम्र गँवा दी हम ने
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
थी लाग न उस के बोलों में की बात न कोई लगावट की
उस के फ़िक़रे टूटे-टूटे उस की आँखें खोई-खोई