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नज़्म
अब हिरन की तरह से भूले हुए हैं चौकड़ी
इस क़दर रटना पड़ा है जल उठी है खोपड़ी
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
ख़ुदा मेरी खोपड़ी के अंदर चमगादड़ की तरह फड़फड़ा रहा है
समुंदर मेरा पाँव चूम रहे हैं
पैग़ाम आफ़ाक़ी
नज़्म
न होंगे ख़्वाब उस का जो गवय्ये और खिलाड़ी हों
हदफ़ होंगे तुम्हारा कौन तुम किस के हदफ़ होगे
जौन एलिया
नज़्म
ये किस तरह याद आ रही हो ये ख़्वाब कैसा दिखा रही हो
कि जैसे सच-मुच निगाह के सामने खड़ी मुस्कुरा रही हो
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
जो नौजवाँ हैं उन की तय्यारियाँ बड़ी हैं
हाथों में लाल छड़ियाँ कोठों पे वो खड़ी हैं
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
कौन कहे किस सम्त है तेरी रौशनियों की राह
हर जानिब बे-नूर खड़ी है हिज्र की शहर-पनाह