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नज़्म
दौलत के फ़रेबी बंदों का ये किब्र और नख़वत मिट जाए
बर्बाद वतन के महलों से ग़ैरों की हुकूमत मिट जाए
आमिर उस्मानी
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
इक़बाल सुहैल
नज़्म
ज़िंदगी को नागवार इक सानेहा जाने हुए
बज़्म-ए-किबर-ओ-नाज़ में फ़र्ज़ अपना पहचाने हुए
सीमाब अकबराबादी
नज़्म
न किब्र-सिनी न ज़ोफ़ न लाचारी से पनाह माँगूँगा
न दुनिया जहान की ख़ुशियाँ न शान-ओ-शौकत ही
अबु बक्र अब्बाद
नज़्म
रिया-ओ-किब्र तही-इख़्लास और बद-अतवारी से तेरे
जहाँ में इश्क़ उख़ुव्वत इल्म और अख़्लाक़ मरते हैं
अबु बक्र अब्बाद
नज़्म
मिटा डालेंगे हम हर ख़ुद-सर ओ मग़रूर का ग़र्रा
तह-ओ-बाला निज़ाम-ए-किब्र-ओ-नख़वत कर के छोड़ेंगे
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
किब्र-ओ-नख़वत की कलाई मोड़ते आए हैं हम
बुग़्ज़-ओ-नफ़रत का निकलता है हमारे दम से दम
प्रेम पाल अश्क
नज़्म
बुनियाद-ए-ग़ुरूर-ओ-किब्र-ओ-अना को ठोकर से ढा देती है
तदबीर की आख़िर नाकामी तक़दीर को मनवा देती है
सरीर काबिरी
नज़्म
बिर्ज लाल रअना
नज़्म
तल्क़ीन सर-ए-क़ब्र पढ़ें 'मोमिन'-ए-मग़्फ़ूर
फ़रियाद दिल-ए-'ग़ालिब'-ए-मरहूम से निकले
रईस अमरोहवी
नज़्म
पहलू-ए-शाह में ये दुख़्तर-ए-जम्हूर की क़ब्र
कितने गुम-गश्ता फ़सानों का पता देती है