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नज़्म
इस देस का पानी चाँदी है इस देस की मिट्टी सोना है
भरपूर हसीं नज़्ज़ारों से इस देस का कोना कोना है
सय्यदा फ़रहत
नज़्म
कोई मेरी आँखों में चुभते हुए ज़र्रा-ए-रेग के वास्ते
अपने आँचल का कोना भिगो ले
मोहम्मद अनवर ख़ालिद
नज़्म
रात के घुँघट में जुगनुओं की आरज़ू नहीं है
क्यूँकि हर कोना अँधेरे का तुझ से रौशन हुई है
प्रिया शंदिल्या
नज़्म
खड़ा हो वो दीवार से लग कर आँखें बंद कराएँ
फिर छुप जाएँ इधर उधर हम देख के कोना खोली
शाम दुर्रानी
नज़्म
नई कहानी जिस में धरती उगल रही हो सोना
अम्न-ओ-मोहब्बत के गीतों से गूँज रहा हो हर कोना