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नज़्म
सन्नाटा बाव का चलता हो तब देख बहारें जाड़े की
हर चार तरफ़ से सर्दी हो और सेहन खुला हो कोठे का
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
हूँ एक कोठे वाली करती हूँ अपना ही जिस्म नीलाम
हर रात मेरी एक नए ग्राहक के साथ होती है