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नज़्म
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
चुपके-चुपके कुत्तों को कुछ समझाती है शायद
इस समाज के बारे में कुछ बतलाती है शायद
मारूफ़ रायबरेलवी
नज़्म
लेकिन ये मैं क्या बड़ हाँकने बैठ गई
आमदन बरसर-ए-मतलब मैं साँपों के बारे में कुछ कहना चाहती हूँ
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
जाती हूँ, घबराते क्यूँ हो? क्या अँधियारी घोर नहीं?
दो दिल राज़ी के बारे में क़ाज़ी का कुछ ज़ोर नहीं
शाद आरफ़ी
नज़्म
गाजर शलजम और मूली ने कहा कि चौपट है बैंगन
दूसरों के बारे में यूँ तो सब कुछ कहना है आसान