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नज़्म
ये चीख़ती हुई रूहें ये हसरतों के सनम
ये बज़्म-ए-कुफ़्र-ओ-यक़ीं ये जहान-ए-दैर-ओ-हरम
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
बुनियाद-ए-ग़ुरूर-ओ-किब्र-ओ-अना को ठोकर से ढा देती है
तदबीर की आख़िर नाकामी तक़दीर को मनवा देती है
सरीर काबिरी
नज़्म
जो मिरी बात समझता वो सुख़न-दाँ न मिला
कुफ़्र ओ इस्लाम की ख़ल्वत में भी जल्वत में भी
राही मासूम रज़ा
नज़्म
बरहना तेग़ों ने सारे मंज़र बदल दिए हैं
फ़सील-ए-क़स्र-ए-अना के नीचे वफ़ा की लाशें पड़ी हुई हैं
तारिक़ क़मर
नज़्म
कुफ्र-ओ-इस्लाम का इस के नहीं खुलता 'उक़्दा
हाथ में सुब्हा भी है दोष पे ज़ुन्नार भी है
सय्यद वहीदुद्दीन सलीम
नज़्म
'इलाज-ए-तंगी-ए-दामान-ए-याराँ चाहता हूँ मैं
निफ़ाक़-ए-कुफ़्र-ओ-ईमाँ को गुरेज़ाँ चाहता हूँ मैं
अब्दुल क़य्यूम ज़की औरंगाबादी
नज़्म
ख़ालिदा तू है बहिश्त-ए-तुर्कमानी की बहार
तेरी पेशानी पे नूर-ए-हुर्रियत-ए-आईना-कार