आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "kul"
नज़्म के संबंधित परिणाम "kul"
नज़्म
याँ तक जो हो चुका है सो है वो भी आदमी
कुल आदमी का हुस्न ओ क़ुबह में है याँ ज़ुहूर
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
वो फिर से एक कुल बने (किसी नवा-ए-साज़-गार की तरह)
वो फिर से एक रक़्स-ए-बे-ज़मान बने
नून मीम राशिद
नज़्म
यही कुल असासा-ए-ज़िंदगी है इसी को ज़ाद-ए-सफ़र करूँ
किसी और सम्त नज़र करूँ तो मिरी दुआ में असर न हो
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
है कुल की ख़बर उन को मगर जुज़ की ख़बर गुम
ये ख़्वाब हैं वो जिन के लिए मर्तबा-ए-दीदा-ए-तर हेच
नून मीम राशिद
नज़्म
अगर मक़्सूद-ए-कुल मैं हूँ तो मुझ से मावरा क्या है
मिरे हंगामा-हा-ए-नौ-ब-नौ की इंतिहा क्या है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी
शमीम-ए-ज़ुल्फ़ से उस की महक जाती थी कुल वादी
अख़्तर शीरानी
नज़्म
ख़ुतूत-ए-रुख में जल्वा-गर वफ़ा के नक़्श सर-ब-सर
दिल-ए-ग़नी में कुल हिसाब-ए-दोस्ताँ लिए हुए
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
है कुल जहाँ मुतअफ़्फ़िन हवाएँ सब मस्मूम
गुज़र भी जा कि तिरा इंतिज़ार कब से है
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
सो रहे हैं मस्त-ओ-बे-ख़ुद घर के कुल पीर-ओ-जवाँ
हो गई हैं बंद हुस्न-ओ-इश्क़ में सरगोशियाँ
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
शिद्दत-ए-एहसास हो तो ख़ुद सँवर जाता है फ़न
रौशनी होती है कुल दुनिया में जब जलता है मन