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नज़्म
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
पहले तो हुस्न-ए-अमल हुस्न-ए-यक़ीं पैदा कर
फिर इसी ख़ाक से फ़िरदौस-ए-बरीं पैदा कर
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
वही है शोर-ए-हाए-ओ-हू, वही हुजूम-ए-मर्द-ओ-ज़न
मगर वो हुस्न-ए-ज़िंदगी, मगर वो जन्नत-ए-वतन
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
उस को तो 'आतिश'-ओ-'सौदा' ने किया है सज्दा
'जोश'-ओ-'इक़बाल'-ओ-'जिगर' उस के सना-ख़्वाँ हैं तो क्या
हिलाल रिज़वी
नज़्म
उरूस-ए-शब की ज़ुल्फ़ें थीं अभी ना-आश्ना ख़म से
सितारे आसमाँ के बे-ख़बर थे लज़्ज़त-ए-रम से
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
यौम-ए-आज़ादी ने यूँ छिड़का फ़ज़ाओं में गुलाल
गुल्सिताँ से भीनी भीनी ख़ुशबुएँ आने लगीं