aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
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ऐ दिल उन आँखों पर न जाजिन में वफ़ूर-ए-रंज से
ऐ सियह-फ़ाम हसीना तिरा 'उर्यां पैकरकितनी पथराई हुई आँखों में ग़ल्तीदा है
वो अजीब सुब्ह-ए-बहार थीकि सहर से नौहागरी रही
कस बोझ से जिस्म टूटता हैइतना तो कड़ा सफ़र नहीं था
वो कैसा शोबदा-गर थाजो मसनूई सितारों
अब मिरे दूसरे बाज़ू पे वो शमशीर है जोइस से पहले भी मिरा निस्फ़ बदन काट चुकी
इतना सन्नाटा कि जैसे हो सुकूत-ए-सहराऐसी तारीकी कि आँखों ने दुहाई दी है
उम्रों की मसाफ़त सेथक-हार गए आख़िर
मुद्दतों बाद मिला नामा-ए-जानाँ लेकिनन कोई दिल की हिकायत न कोई प्यार की बात
इक उम्र के बाद तुम मिले होऐ मेरे वतन के ख़ुश-नवाओ
इतनी मुद्दत दिल-ए-आवारा कहाँ था कि तुझेअपने ही घर के दर-ओ-बाम भुला बैठे हैं
दिल सुलग उठता है अपने बाम-ओ-दर को देख करफैलने लगती हैं जब भी शाम की परछाइयाँ
तरब-फरोज़ नज़ारों से दूर कोसों दूरजहाँ न क़हक़हा कोई न कोई सरगोशी
इस्मतें लुटती रहीं घर-बार भी जलते रहेतोड़ कर नाता ख़ुदा से हाथ हम मलते रहे
जनम का अंधाजो सोच और सच के रास्तों पर
मुझ से पहले तुझे जिस शख़्स ने चाहा उस नेशायद अब भी तिरा ग़म दिल से लगा रक्खा हो
चलो चलें हम किनार-ए-दरियाजुमूद देखें फ़राज़ देखें
ग़म तुम्हारा था ज़िंदगी गोयातुम को खोया उसे नहीं खोया
तुम अपने अक़ीदों के नेज़ेहर दिल में उतारे जाते हो
भले दिनों की बात हैभली सी एक शक्ल थी
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