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नज़्म
मुज़्महिल वामांदगी से और फ़ाक़ों से निढाल
चार पैसे की तवक़्क़ो सारे कुँबे का ख़याल
सीमाब अकबराबादी
नज़्म
माँग लेती हूँ ज़बाँ से कोई रहज़न तो नहीं
तेरे कुँबे ही से मैं हूँ तिरी दुश्मन तो नहीं
इज़हार मलीहाबादी
नज़्म
फ़रिश्ते हर सहर रोते हैं इस की बद-नसीबी पर
भरे कुँबे की माँ मातम करे अपनी ग़रीबी पर
सय्यद मेहदी हुसैन रिज़वी
नज़्म
उम्मीद है ये घर वालों को जिस दम ये जवाँ हो जाएगा
कुँबे में इज़्ज़त पाएगा हर बिगड़ी को ये बनाएगा