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नज़्म
न वो पहली सी महफ़िल है न मीना है न साक़ी है
कुतुब-ख़ाने में लेकिन अब तलक तलवार बाक़ी है
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
आपस में लड़ भी लेते हैं जब आए इन को जोश
हँसते हैं इम्तिहान के दिन ये कुतुब-फ़रोश
प्रवाना रुदौलवी
नज़्म
कि अब शहरों में मार ओ अज़दर ओ कर्गस नहीं मिलते
कुतुब-ख़ानों में अफ़्क़ार-ओ-अक़ाएद जल्वा-फ़रमा हैं
सहर अंसारी
नज़्म
शुऊर-ओ-फ़िक्र का गहवारा इल्म-ओ-फ़न का अमीं
वरक़ वरक़ जहाँ महके हैं रंग-ओ-नूर के फूल
नसीर प्रवाज़
नज़्म
जिस के पर्दों में नहीं ग़ैर-अज़-नवा-ए-क़ैसरी
देव-ए-इस्तिब्दाद जम्हूरी क़बा में पा-ए-कूब
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कैसे कैसे औलिया गुज़रे और क़ुतुब-ए-ज़माँ
जिन के क़दमों ने बनाया है तुझे जन्नत-निशाँ
सफ़ीर काकोरवी
नज़्म
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
क़ुतुब सितारा किधर को होगा रात की रानी कैसी होगी
सुब्ह का सूरज कहाँ पे होगा अभी ख़ुदा क्या करता होगा
आसिम बद्र
नज़्म
उस के सीने में क़ुतुब-शाह का किरदार भी है
वज़्अ'-दारी भी है इख़्लास भी है प्यार भी है