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नज़्म
दिमाग़ अपना क़दम रखते ही पहूँचा अर्श-ए-आ'ला पर
ज़मीन-ए-कू-ए-जानाँ आसमाँ मालूम होती है
नजमा तसद्दुक़
नज़्म
उड़ाते हो हँसी वारफ़्तगान-ए-कू-ए-वहशत की
ख़िरद-मंदो तुम्हें तो हम शरीक-ए-ग़म नहीं करते
मुनीर वाहिदी
नज़्म
सौदा है लीडरी का जो दिल को सताए है
''दिल फिर तवाफ़-ए-कू-ए-मलामत को जाए है''