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नज़्म
इस क़ौम की फ़लाह है जाम-ओ-सुबू के बेच
तुम इंतिख़ाब जा के लड़ो हाव-हू के बीच
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
फिर वो टूटा इक सितारा फिर वो छूटी फुल-जड़ी
जाने किस की गोद में आई ये मोती की लड़ी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
गर तो है लक्खी बंजारा और खेप भी तेरी भारी है