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नज़्म
न तुम मेरी तरफ़ देखो ग़लत-अंदाज़ नज़रों से
न मेरे दिल की धड़कन लड़खड़ाए मेरी बातों से
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ढल चुकी रात बिखरने लगा तारों का ग़ुबार
लड़खड़ाने लगे ऐवानों में ख़्वाबीदा चराग़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
हुज़ूर होंट इस तरह से कपकपा रहे हैं क्यूँ
हुज़ूर आप हर क़दम पे लड़-खड़ा रहे हैं क्यूँ
अहमद फ़राज़
नज़्म
क़दम दो चार ले कर तुम जो इक-दम लड़खड़ाई थीं
मिरी साँसें मिरे सीने के अंदर थरथराई थीं
अफ़ीफ़ सिराज
नज़्म
मगर बद-मस्त है हर हर क़दम पर लड़खड़ाती है
मुबारक दोस्तो लबरेज़ है अब इस का पैमाना
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
दोश-ए-गीती पे परेशाँ हुई फिर ज़ुल्फ़-ए-शमीम
लड़खड़ाती हुई फिरती है गुलिस्ताँ में नसीम
हफ़ीज़ बनारसी
नज़्म
मेरे हाथ और मेरी ज़बान दोनो लड़खड़ाते हैं
ये इस बात का सुबूत है कि मुझे नज़्मों से इश्क़ तो है