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नज़्म
पूरा चाँद निकलता है तो भेड़िया अक्सर रोता है
रात को कुत्ता भौं भौं करता दिन को उल्लू सोता है
जमील उस्मान
नज़्म
फिर उसी वादी-ए-शादाब में लौट आया हूँ
जिस में पिन्हाँ मिरे ख़्वाबों की तरब-गाहें हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मार्क्स के इल्म ओ फ़तानत का नहीं कोई जवाब
कौन उस के दर्क से होता नहीं है फ़ैज़-याब