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नज़्म
फ़लक पे वज्द में लाती है जो फ़रिश्तों को
वो शाएरी भी बुलूग़-ए-मिज़ाज-ए-तिफ़्ली है
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
जैसे मौजों का तरन्नुम जैसे जल-परियों के गीत
एक इक लय में हज़ारों ज़मज़मे गाती हुई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
खनकती हैं रसोई घर में अल्हड़ चूड़ियाँ अब तक
भरा की पोलियाँ लाती हैं सर पर बूढ़ियाँ अब तक
वसीम बरेलवी
नज़्म
इशरत आफ़रीं
नज़्म
गुलशन-ए-आलम में जब तशरीफ़ लाती है बहार
रंग-ओ-बू के हुस्न क्या क्या कुछ दिखाती है बहार
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
याँ तक तो उन पे लाती है नाचारी शब-बरात
वारिस हैं जिन के जीते वो मुर्दे भी आन कर