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नज़्म
मगर क्या कीजिए जब फ़ैसला ये है मशिय्यत का
कि मैं फ़ितरत की आँखों से गिरूँ अश्क-ए-रवाँ हो कर
अहसन अहमद अश्क
नज़्म
गुल से अपनी निस्बत-ए-देरीना की खा कर क़सम
अहल-ए-दिल को इश्क़ के अंदाज़ समझाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
यहाँ आसूदगी इक लफ़्ज़-ए-बे-मफ़्हूम है गोया
मक़ाम-ए-ज़िंदगी से ज़िंदगी महरूम है गोया
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
किसी इक लफ़्ज़-ए-बे-मअ'नी की मीठी मीठी सरगोशी
यही चीज़ें मिरे ग़मगीं ख़यालों पर हमेशा छाई रहती हैं
मीराजी
नज़्म
एक इक लफ़्ज़-ए-बे-रंग की पैकरियत छुवाने पे मामूर है
अक्स जितने भी नंग-ए-बसीरत हैं सब
रशीद एजाज़
नज़्म
देखिए देते हैं किस किस को सदा मेरे बाद
'कौन होता है हरीफ़-ए-मय-ए-मर्द-अफ़गन-ए-इश्क़'