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नज़्म
उफ़ुक़ पर जंग का ख़ूनीं सितारा जगमगाता है
हर इक झोंका हवा का मौत का पैग़ाम लाता है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जो घिर के अब्र कभी इस मज़े में आता है
तो बादलों में वो क्या क्या ही रंग लाता है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
वो ठुमरी दादरा और भैरवीं में बात करती थी
तरन्नुम में सुरय्या और लता को मात करती थी
नश्तर अमरोहवी
नज़्म
तुम अमर हो तो लचकती टहनियों की मामता हो
तुम जवानी हो तबस्सुम हो मोहब्बत की लता हो
महबूब ख़िज़ां
नज़्म
तिरा नन्हा सा क़ासिद जो तिरे ख़त ले कर आता था
न था मालूम उसे किस तरह के पैग़ाम लाता था
अख़्तर शीरानी
नज़्म
मैं बुराई राम की करता हूँ जा कर शाम से
शाम ने जो कुछ कहा वो राम तक लाता हूँ मैं
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
आलम-ए-बाला से इक पैग़ाम-ए-नौ लाता था तू
रूह की गहराइयों तक उस को पहुँचाता था तू