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नज़्म
चाँद आज की रात नहीं निकला
वो अपने लिहाफ़ों के अंदर चेहरे को छुपाए बैठा है
तसद्द्क़ हुसैन ख़ालिद
नज़्म
उसे क्या इल्म इन रंगीं लिफ़ाफ़ों में छुपा क्या है
किसी महवश का इन के भेजने से मुद्दआ क्या है
अख़्तर शीरानी
नज़्म
जिसे चिंगीर में रख कर तुम्हें परोस दूँ!
तुम तो सरमा के लिहाफ़ में भी ठंडे पड़ रहे हो
अंजुम सलीमी
नज़्म
हया की सब्ज़ कतरनें कि जिन पे सुर्ख़ मोतियों का नीलगूँ लिहाफ़ था
न-जाने कौन सम्त हैं