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नज़्म
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
गर तो है लक्खी बंजारा और खेप भी तेरी भारी है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
हुज़ूर होंट इस तरह से कपकपा रहे हैं क्यूँ
हुज़ूर आप हर क़दम पे लड़-खड़ा रहे हैं क्यूँ
अहमद फ़राज़
नज़्म
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
तीन बार लड़ चुके लड़ाई कितना महँगा सौदा
रूसी बम हो या अमरीकी ख़ून एक बहना है