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नज़्म
समाते हैं फिर उस में ठस के यूँ बे-लुत्फ़-ओ-आसाइश
नहीं रहती है नालों के निकलने की भी गुंजाइश
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
बे-सबब तुझ से वफ़ादार ने मुँह मोड़ लिया
मुँह दिखाते नहीं अब अहल-ए-वफ़ा तेरे बाद
ज़ाहिदा ख़ातून शरवानिया
नज़्म
बे-सबब ही चीं-ब-जबीं होने की घड़ियाँ आ गईं
बे-इरादा मुस्कुराने का ज़माना आ गया
शमीम फ़ारूक़ बांस पारी
नज़्म
किसी के सीम-ओ-ज़र से बे-सबब काविश नहीं हम को
किसी पर ज़ुल्म ढाने की कभी ख़्वाहिश नहीं हम को
मसूद अख़्तर जमाल
नज़्म
बजा कि तुझ को मोहब्बत थी मुझ से अब तो नहीं
ये बे-क़रारी-ए-दिल मेरी बे-सबब तो नहीं
शगुफ़्ता नईम हाश्मी
नज़्म
थी हर इक जुम्बिश निशान-ए-लुत्फ़-ए-जाँ मेरे लिए
हर्फ़-ए-बे-मतलब थी ख़ुद मेरी ज़बाँ मेरे लिए
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
न तो बे-रुख़ी से यूँ पेश आ न तो बे-सबब मिरा दिल दुखा
बड़ी जान-लेवा हैं दूरियाँ मिरे पास आ मिरे पास आ