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नज़्म
लिए हैं कर में मंगल-घट न क्यूँ घट घट पे छा जाएँ
अगर परतव पड़े मुर्दा-दिलों पर वो भी जी जाएँ
नज़ीर बनारसी
नज़्म
दामोदर की शान है तुम से अज़्मत-ए-चंबल तुम से है
तुम ने बसाए शहर निराले जंगल तुम से मंगल हैं
अर्श मलसियानी
नज़्म
सरसब्ज़ हो गया है वीरान सारा जंगल
जंगल में मच गया है हर-सू ख़ुशी का मंगल