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नज़्म
सिदक़-ए-ख़लील भी है इश्क़ सब्र-ए-हुसैन भी है इश्क़!
म'अरका-ए-वजूद में बद्र ओ हुनैन भी है इश्क़!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
नक़्श फ़रियादी है इन की शोख़ी-ए-तहरीर का
म'अरका होता है अब तदबीर का तक़दीर का
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
शाम को मिलना ज़रा फ़ुटबाल के मैदान में
मा'रका फिर कोई गरमाने की हसरत है तो है
अताउर्रहमान तारिक़
नज़्म
मेरी तमाम ज़िंदगी मा'रका-हाए-ख़ैर-ओ-शर
मेरी निगाह-ए-अर्श पर मैं कफ़-ए-ख़ाक-ए-ओ-ख़ुद-निगर