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नज़्म
मनहूस समाजी ढाँचों में जब ज़ुल्म न पाले जाएँगे
जब हाथ न काटे जाएँगे जब सर न उछाले जाएँगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
यही मक़्सूद-ए-फ़ितरत है यही रम्ज़-ए-मुसलमानी
उख़ुव्वत की जहाँगीरी मोहब्बत की फ़रावानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मैं कि ख़ुद अपने मज़ाक़-ए-तरब-आगीं का शिकार
वो गुदाज़-ए-दिल-ए-मरहूम कहाँ से लाऊँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
सोचता हूँ कि तुझे मिल के मैं जिस सोच में हूँ
पहले उस सोच का मक़्सूम समझ लूँ तो कहूँ
साहिर लुधियानवी
नज़्म
इन दमकते हुए शहरों की फ़रावाँ मख़्लूक़
क्यूँ फ़क़त मरने की हसरत में जिया करती है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जिस अहद-ए-सियासत ने ये ज़िंदा ज़बाँ कुचली
उस अहद-ए-सियासत को मरहूम का ग़म क्यूँ है