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नज़्म
ज़मीन को हुस्न और मअ'नी से माला-माल कर दें
एहतिराम डाल दे इन के दिल-ओ-दिमाग़ में इस ज़मीन के लिए
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
जो जले चमकते अब्र-पारों नरकुलों नीलूफ़रों से जा-ब-जा आबाद
कहीं नीलम कहीं लाल-ओ-जमुर्रद से जो माला माल
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
नज़्म
हामी-ए-जौर-ओ-सितम हर तरह माला-माल था
जिस की लाठी थी उसी की भैंस थी ये हाल था
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
फ़ुर्सत नहीं जो दिन को मैं फ़िक्र-ए-सुख़न करूँ
रातों को मारा मार ग़ज़ल कह रही हूँ मैं