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नज़्म
सब गलियों में तरनजन थे और हर तरनजन में सखियाँ थीं
सब के जी में आने वाली कल का शौक़-ए-फ़रावाँ था
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
अगर तेरी तमन्ना है कि शायान-ए-ख़िलाफ़त हो
तो शौक़-ए-बंदगी-ए-वाहिद-ए-क़हहार पैदा कर