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नज़्म
तुम चाहो तो बस्ती छोड़े तुम चाहो तो दश्त बसाए
ऐ मतवालो नाक़ों वालो वर्ना इक दिन ये होगा
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
ख़ून-ए-दिल देना पड़ा ख़ून-ए-जिगर देना पड़ा
अपने ख़्वाबों की हसीं परछाइयाँ देना पड़ीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
ये आंधियों की क़तारें ये कारवान-ए-हयात
न पूछ कितने शगूफ़े हैं मरकज़-ए-आफ़ात
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
'इलाज-ए-तंगी-ए-दामान-ए-याराँ चाहता हूँ मैं
निफ़ाक़-ए-कुफ़्र-ओ-ईमाँ को गुरेज़ाँ चाहता हूँ मैं
अब्दुल क़य्यूम ज़की औरंगाबादी
नज़्म
ऐ कि मा'लूम नहीं तुझ को ख़ुदी का मक़्सूद
आतिशीं-‘अज़्म से है मा'रका-ए-बूद-ओ-नबूद
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
क्या बाग़ियों की आतिश-ए-दिल सर्द हो गई
क्या सरकशों का जज़्बा-ए-पिनहां चला गया
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
क़ल्ब-ए-गीती मैं तबाही के शरारे भर दें
ज़ुल्मत-ए-कुफ़्र को ईमान नहीं कहते हैं
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
जो मिरी बात समझता वो सुख़न-दाँ न मिला
कुफ़्र ओ इस्लाम की ख़ल्वत में भी जल्वत में भी
राही मासूम रज़ा
नज़्म
कुफ्र-ओ-बातिल के उड़े हाथों के तोते ऐ 'चर्ख़'
हक़-परस्ती का वो यूँ डंका बजाता आया