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नज़्म
जल्वा-ए-नूर-ए-अज़ल ‘आलम-ए-तनवीर में था
या'नी जो कुछ भी था बस ख़ाक की ता'मीर में था
बिस्मिल इलाहाबादी
नज़्म
जल्वा-ए-हुस्न-ए-अज़ल आए तसव्वुर में अगर
गोशा-ए-दिल में मचलते हुए अरमाँ होंगे
लाला अनूप चंद आफ़्ताब पानीपति
नज़्म
अंधेरा हर तरफ़ छाया हुआ है
अंधेरा ही अज़ल है और अंधेरा ही अबद की जोत है शायद