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नज़्म
मुझे भी लोग कहते हैं कि ये जल्वे पराए हैं
मिरे हमराह भी रुस्वाइयाँ हैं मेरे माज़ी की
साहिर लुधियानवी
नज़्म
अपने माज़ी के तसव्वुर से हिरासाँ हूँ मैं
अपने गुज़रे हुए अय्याम से नफ़रत है मुझे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ये सच कि सुहाने माज़ी के लम्हों को भुलाना खेल नहीं
ये सच कि भड़कते शोलों से दामन को बचाना खेल नहीं
आमिर उस्मानी
नज़्म
अपने माज़ी के तारों में हम से पिरोया गया है
हमीं में कि जैसे हमीं हों समोया गया है