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नज़्म
''म'अज़ूर हूँ जो पाँव मिरा बे-तरह पड़े''
''तुम सरगिराँ तो मुझ से न हो मैं नशे में हूँ''
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
बहुत माज़ूर हैं ये ख़ुद-निगर अपनी जिबिल्लत से
मुक़द्दर इन का है शाम ओ सहर को रोज़ सर करना
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
कितने ही मा'ज़ूर यहाँ पर रोज़ आते हैं
तुम कैसे मा'ज़ूर हो जिस की जिंस नहीं है
मोहम्मद ओवैस मालिक
नज़्म
हसन अल्वी
नज़्म
ग़ालिबन शीशे का टुकड़ा या कोई कंकर चुभा
रक़्स तो क्या चलने फिरने से हुआ मा'ज़ूर मैं