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नज़्म
फिर क्या था दिल ऐसे मचला अपने आप को भूल गया मैं
ज़ोर से तुझ को भेंच कर अपनी बाहोँ में कुछ बोल उठा मैं
तख़्त सिंह
नज़्म
बिन मुर्दे घर में शोर मचाती है मुफ़्लिसी
लाज़िम है गर ग़मी में कोई शोर-ग़ुल मचाए