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नज़्म
खेलता था जब लड़कपन से तिरा रंगीं शबाब
हट रही थी माह-ए-आलम-ताब के रुख़ से नक़्क़ाब
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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खेलता था जब लड़कपन से तिरा रंगीं शबाब
हट रही थी माह-ए-आलम-ताब के रुख़ से नक़्क़ाब