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नज़्म
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
तज़ादात अब जो पैदा हैं, वो पैदा ही नहीं होते
कहीं कुंज-ए-सुकूँ मिस्ल-ए-मदीना मुझ को मिल जाता
कौसर मज़हरी
नज़्म
हर नस्ल इक फ़स्ल है धरती की आज उगती है कल कटती है
जीवन वो महँगी मदिरा है जो क़तरा क़तरा बटती है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
''चौकी आँगन में बिछी वास्ती दूल्हा के लिए''
मक्के मदीने के पाक मुसल्ले पयम्बर घर नवासे