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नज़्म
इब्न-ए-अदना को इक बार फिर से बुलाया गया
इब्न-ए-अदना कि अपने कमाल-ए-महारत में बे-मिस्ल था
आबिद रज़ा
नज़्म
वो मेरे आसमाँ पर अख़्तर-ए-सुब्ह-ए-क़यामत है
सुरय्या-बख़्त है ज़ोहरा-जबीं है माह-ए-तलअत है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
है दुनिया जिस का नाँव मियाँ ये और तरह की बस्ती है
जो मंहगों को ये महँगी है और सस्तों को ये सस्ती है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
पैठी हो सर्दी रग रग में और बर्फ़ पिघलता हो पत्थर
झड़-बाँध महावट पड़ती हो और तिस पर लहरें ले ले कर
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
जिन में रहते हैं महाजन जिन में बस्ते हैं अमीर
जिन में काशी के बरहमन जिन में काबे के फ़क़ीर