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नज़्म
क्या ज़रूरी है कि हम फ़ोन पे बातें भी करें
क्या ज़रूरी है कि हर लफ़्ज़ महकने भी लगे
मुनव्वर राना
नज़्म
तेरी ख़ुशबू से महकने लगा गुलशन गुलशन
डालियाँ फूलों की झुक कर तुझे कहती हैं सलाम
प्रेम वारबर्टनी
नज़्म
क्यूँ तेरे नाम को सुनते ही मिरी साँस महकने लगती है
एहसास नशे में होता है हर फ़िक्र बहकने लगती है
नाज़ बट
नज़्म
ज़िंदगी गुल के महकने की अदा है ऐ दिल
मुझ को एहसास है अब ख़ाक-ए-वतन को है ज़रूरत मेरी
रिफ़अत सरोश
नज़्म
फिर आज डालियाँ फूलों की रक़्स करने लगीं
फिर आज ख़ुश्बूओं से बाम-ओ-दर महकने लगे