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नज़्म
हमारी ही तरह जो पाएमाल-ए-सतवत-ए-मीरी-ए-ओ-ए-शाही में
लिखोखा आबदीदा पा-पियादा दिल-ज़दा वामाँदा राही हैं
मजीद अमजद
नज़्म
हुक्म भेजा कि कनीज़ान-ए-शबिस्तान-ए-शाही
जा के पूछ आएँ कि सच या कि ग़लत है ये सुख़न
शिबली नोमानी
नज़्म
था दिमाग़-ओ-दिल में सहबा-ए-क़नाअत का सुरूर
थी जवाब-ए-सतवत-ए-शाही तिरी तब-ए-ग़यूर