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नज़्म
नुत्क़ को सौ नाज़ हैं तेरे लब-ए-एजाज़ पर
महव-ए-हैरत है सुरय्या रिफ़अत-ए-परवाज़ पर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कभी महव-ए-हैरत बनी तख़य्युल में खो जाती हूँ
मेरा नन्हा सा ज़ेहन मायूस सा रह जाता है
मसऊ़दा इमाम
नज़्म
महव-ए-हैरत है लताफ़त देख कर रंग-ए-गुलाब
ये वो गुल है जिस का मिल सकता नहीं हरगिज़ जवाब
सय्यद मोहम्मद हादी
नज़्म
जाहिल को तौक़ीर है बख़्शी आलिम को बन-बास दिया है
और आलिम तुझ किज़्ब-ए-सिफ़त को महव-ए-हैरत ताक रहा है
अबु बक्र अब्बाद
नज़्म
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
गर फ़िक्र-ए-ज़ख्म की तो ख़ता-वार हैं कि हम
क्यूँ महव-ए-मद्ह-ए-खूबी-ए-तेग़-ए-अदा न थे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
चाँद और सूरज का हमदम हूँ फ़लक-पैमा हूँ मैं
आज तक महव-ए-तलाश-ए-फ़ितरत-ए-कुबरा हूँ मैं
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
खींचती वक़्त-ए-सहर दिल को तिरी कू-कू न थी
छाँव में तारों की महव-ए-नग़्मा-ए-दिल-जू न थी