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नज़्म
गर फ़िक्र-ए-ज़ख्म की तो ख़ता-वार हैं कि हम
क्यूँ महव-ए-मद्ह-ए-खूबी-ए-तेग़-ए-अदा न थे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ख़ाना-ए-दिल में है तेरे कौन महव-ए-रक़्स-ए-नाज़
आ रही है किस की छागल की सदा-ए-जाँ-नवाज़
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
चाँद और सूरज का हमदम हूँ फ़लक-पैमा हूँ मैं
आज तक महव-ए-तलाश-ए-फ़ितरत-ए-कुबरा हूँ मैं
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
तेरे मक़्दम में शकेब-ए-ख़ातिर-ए-ना-शाद मैं
मौसम-ए-गुल को भी देता हूँ मुबारकबाद मैं